भारत में अगर किसी धार्मिक आयोजन को सबसे बड़ा और भव्य कहा जाए तो वह है कुंभ मेला। दुनिया के सबसे विशाल धार्मिक मेलों में गिना जाने वाला यह पर्व न सिर्फ आस्था का प्रतीक है बल्कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की जड़ों को भी दर्शाता है। जब भी कुंभ मेले की चर्चा होती है तो लोगों के मन में एक सवाल जरूर उठता है।कुंभ मेला कितने वर्ष में लगता है? पूरी जानकारी और यही आज हम विस्तार से समझेंगे।
कुंभ मेले का महत्व
कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक जमावड़ा नहीं है, बल्कि यह वह अवसर है जब देशभर से साधु-संत, अखाड़े और श्रद्धालु एक साथ आते हैं। यहां आपको साधुओं की अलग-अलग परंपराएं देखने को मिलती हैं, नागा साधुओं का शाही स्नान होता है और गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर आस्था का महासागर उमड़ पड़ता है। माना जाता है कि कुंभ में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं और आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुंभ मेला कितने वर्ष में लगता है?
अब आते हैं आपके असली सवाल पर। कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार लगता है। यह एक निश्चित खगोलीय गणना के आधार पर होता है। दरअसल, जब बृहस्पति (गुरु ग्रह), सूर्य और चंद्रमा खास स्थिति में आते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इसे ज्योतिषीय विज्ञान से जोड़ा जाता है और इसी कारण इसकी तिथियां बदलती रहती हैं।
लेकिन सिर्फ एक ही कुंभ मेला नहीं होता, इसके भी अलग-अलग रूप हैं।
- पूर्ण कुंभ मेला (हर 12 साल में)
यह सबसे बड़ा और मुख्य कुंभ मेला होता है। इसे इलाहाबाद (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक – इन चार जगहों पर आयोजित किया जाता है। - अर्ध कुंभ मेला (हर 6 साल में)
इसे छोटे कुंभ मेले के नाम से भी जाना जाता है। हर 6 साल बाद आयोजित होने वाला यह मेला भी लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। - महाकुंभ मेला (हर 144 साल में)
यह सबसे दुर्लभ और भव्य मेला है, जो 12 कुंभ मेलों के बाद यानी 144 साल में एक बार आयोजित होता है।
यानी सीधी भाषा में समझें तो –
- हर 6 साल में अर्ध कुंभ
- हर 12 साल में पूर्ण कुंभ
- और हर 144 साल में महाकुंभ
कुंभ मेला कहां-कहां लगता है?
कुंभ मेला चार प्रमुख स्थानों पर आयोजित होता है और इन स्थानों का संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जोड़ा जाता है।
- प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) : गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर
- हरिद्वार (उत्तराखंड) : गंगा नदी के किनारे
- उज्जैन (मध्य प्रदेश) : क्षिप्रा नदी के किनारे
- नासिक (महाराष्ट्र) : गोदावरी नदी के किनारे
कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के समय अमृत कलश को लेकर देवता और असुरों में युद्ध हुआ, तब भगवान विष्णु ने उस कलश को इन चार स्थानों पर रखा। इसलिए इन चार जगहों को कुंभ मेले के आयोजन के लिए चुना गया।
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कुंभ मेले की खासियत
कुंभ मेला सिर्फ आस्था का पर्व नहीं है बल्कि यह भारतीय समाज की एक झलक भी दिखाता है। यहां परंपरा, संस्कृति, धर्म, योग और अध्यात्म सबका संगम देखने को मिलता है। लाखों की भीड़ के बावजूद यह मेला अपने अनुशासन और धार्मिक माहौल के लिए जाना जाता है।
- यहां साधु-संतों की अलग-अलग परंपराएं देखने को मिलती हैं।
- शाही स्नान का नजारा बेहद अद्भुत होता है।
- भक्त मानते हैं कि गंगा में स्नान करने से आत्मा पवित्र होती है।
- यह मेला भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को मजबूत करता है।
कुंभ मेले से जुड़ी पौराणिक कथा
कुंभ मेले की जड़ें समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी हैं। पौराणिक मान्यता है कि जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो उसमें अमृत कलश निकला। अमृत पाने की होड़ में देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ। इस दौरान भगवान विष्णु ने अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए उसे चार स्थानों पर रखा। इन्हीं जगहों पर आज कुंभ मेले का आयोजन होता है।
कुंभ मेले की तैयारी
कुंभ मेला एक ऐसा आयोजन है, जिसकी तैयारी कई साल पहले से शुरू हो जाती है। लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं, इसलिए व्यवस्था करना एक बड़ी चुनौती होती है। सरकार अस्थायी शहर की तरह टेंट, सड़कें, अस्पताल, बिजली, पानी और सुरक्षा का इंतजाम करती है।

कुंभ मेले के 5 रोचक तथ्य
- दुनिया का सबसे बड़ा मेला : कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जिसमें करोड़ों लोग शामिल होते हैं।
- स्पेस से भी दिखाई देता है : नासा ने बताया था कि कुंभ मेले की भीड़ इतनी विशाल होती है कि इसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है।
- सदियों पुरानी परंपरा : कुंभ मेले का जिक्र प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में भी मिलता है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण : शोध बताते हैं कि कुंभ के दौरान गंगा का जल अधिक पवित्र और औषधीय गुणों से भरपूर हो जाता है।
- अद्भुत अनुशासन : इतनी बड़ी भीड़ होने के बावजूद यहां व्यवस्था और शांति बनी रहती है, जो दुनिया के लिए मिसाल है।
निष्कर्ष:कुंभ मेला कितने वर्ष में लगता है? पूरी जानकारी
तो अब आपको साफ समझ आ गया होगा कि कुंभ मेला हर 12 साल में लगता है, लेकिन इसके अलग-अलग रूप – अर्धकुंभ (6 साल), पूर्ण कुंभ (12 साल) और महाकुंभ (144 साल) होते हैं। यह सिर्फ आस्था का पर्व नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का सबसे बड़ा उत्सव है। अगर आप कभी भी कुंभ मेले में जाने का अवसर पाएं तो जरूर जाइए, क्योंकि वहां जाकर आप महसूस करेंगे कि भारतीय परंपरा और आस्था का असली रूप क्या होता है।



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