अगर भारत की सबसे बड़ी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की बात की जाए, तो सबसे पहले नाम आता है कुंभ मेला का। आपने इसके बारे में तो जरूर सुना होगा, और हो सकता है कि कभी आपने टीवी या अख़बार में इसकी तस्वीरें भी देखी हों। करोड़ों लोग संगम तट पर स्नान करते हुए नज़र आते हैं, और हर कोई इस मेले को दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक जमावड़ा कहता है। लेकिन आपके मन में भी यह सवाल जरूर आता होगा कि आखिर कुंभ मेला कब और कहाँ लगता है? और क्यों यह इतना खास है कि लोग दुनिया के कोने-कोने से इसे देखने और इसमें शामिल होने आते हैं। चलिए, इस पूरे विषय को आसान भाषा में समझते हैं।

कुंभ मेले का महत्व क्यों है?
भारत में त्योहार और मेले सिर्फ एक धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि हमारी संस्कृति की पहचान भी हैं। कुंभ मेला उनमें सबसे बड़ा है। इसे लेकर मान्यता है कि जो भी व्यक्ति कुंभ मेला के दौरान गंगा, यमुना या क्षिप्रा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कुंभ मेला सिर्फ साधुओं या साधारण भक्तों का मेला नहीं है, बल्कि यह भारत की विविधता और एकता का भी प्रतीक है। यहां नागा साधु, अखाड़े, श्रद्धालु, विदेशी पर्यटक और आम लोग सब एक ही जगह दिखाई देते हैं। यही वजह है कि इसे “विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला” कहा जाता है।
कुंभ मेला कहाँ-कहाँ लगता है?
अब असली सवाल पर आते हैं। कुंभ मेला हमेशा एक ही जगह नहीं लगता, बल्कि यह चार अलग-अलग पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है। ये जगहें हैं:
- प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) : यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम है। यही जगह सबसे प्रसिद्ध मानी जाती है, और यहां का कुंभ मेला सबसे बड़ा होता है।
- हरिद्वार (उत्तराखंड) : गंगा नदी के तट पर स्थित हरिद्वार का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। यहां हर 12 साल में कुंभ मेला आयोजित होता है।
- उज्जैन (मध्य प्रदेश) : क्षिप्रा नदी के किनारे लगता है, और यह भी हिंदू धर्म में बेहद पवित्र स्थान है।
- नासिक (महाराष्ट्र) : गोदावरी नदी के तट पर नासिक का कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
तो कुंभ मेला इन चार पवित्र स्थलों पर बारी-बारी से लगता है, और हर जगह का अपना अलग धार्मिक महत्व है।
कुंभ मेला कब लगता है?
यहां थोड़ा कैलेंडर का खेल है। कुंभ मेला कोई हर साल लगने वाला आयोजन नहीं है। इसे ग्रहों-नक्षत्रों की चाल देखकर तय किया जाता है। खासतौर पर बृहस्पति (गुरु), सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को देखकर कुंभ मेले की तारीखें तय होती हैं।
- हर 12 साल बाद कुंभ मेला होता है।
- हर 6 साल बाद अर्धकुंभ मेला लगता है, जो प्रयागराज और हरिद्वार में होता है।
- और हर 12 साल में एक बड़ा आयोजन होता है, जिसे महा कुंभ मेला कहा जाता है। महा कुंभ सिर्फ प्रयागराज में लगता है और इसे दुनिया का सबसे विशाल धार्मिक आयोजन माना जाता है।
यानी अगर आपसे पूछा जाए कि “कुंभ मेला कब लगता है?”, तो इसका सीधा जवाब है – हर 12 साल बाद, लेकिन किस जगह पर लगेगा, यह उस साल की ग्रह-स्थिति पर निर्भर करता है।
कुंभ मेले का ऐतिहासिक और धार्मिक आधार?
कुंभ मेले की कहानी पौराणिक कथाओं से जुड़ी है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय देवता और असुरों के बीच अमृत कलश पाने के लिए युद्ध हुआ था। इस अमृत की बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर गिरी थीं। यही वजह है कि आज भी इन्हीं चार जगहों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
यह कहानी सुनने में भले पौराणिक लगे, लेकिन इसी ने करोड़ों लोगों की आस्था को इन जगहों से जोड़ दिया है। यही कारण है कि हर कुंभ मेले में लाखों साधु-संत और करोड़ों भक्त एकत्रित होते हैं।
यह भी जानें – कुंभ मेला कितने वर्ष में लगता है? पूरी जानकारी
कुंभ मेले में क्या खास होता है?
अगर आप कभी कुंभ मेले में गए होंगे, तो आपने देखा होगा कि यहां सिर्फ स्नान ही नहीं होता, बल्कि यह एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव होता है।
- यहां अखाड़ों की शोभायात्राएं निकलती हैं।
- नागा साधु सबसे पहले शाही स्नान करते हैं, जिसे बहुत शुभ माना जाता है।
- मेले में संतों के प्रवचन, भजन-कीर्तन और धार्मिक आयोजन होते हैं।
- देशभर से आए लोग अलग-अलग संस्कृतियों और परंपराओं को यहां साझा करते हैं।
यानी कुंभ मेला एक ऐसा अनुभव है, जो जिंदगी में एक बार जरूर करना चाहिए।
कुंभ मेले से जुड़ी 5 रोचक बातें?
- कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा मानव जमावड़ा है। यहां एक बार में 3-4 करोड़ लोग तक इकट्ठा हो जाते हैं।
- इसे यूनेस्को ने 2017 में विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया है।
- कुंभ मेले के दौरान अस्थायी रूप से एक “टेंट सिटी” बसाई जाती है, जहां लाखों लोग ठहरते हैं।
- मेले में सुरक्षा और व्यवस्था के लिए हजारों पुलिसकर्मी, डॉक्टर और वालंटियर तैनात रहते हैं।
- कुंभ मेला सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र है, यहां हर साल हजारों विदेशी पर्यटक भी आते हैं।

निष्कर्ष:कुंभ मेला कब और कहाँ लगता है?
तो अब आपको साफ समझ आ गया होगा कि कुंभ मेला कब और कहाँ लगता है। यह हर 12 साल बाद प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक – इन चार पवित्र जगहों पर आयोजित होता है। इसकी तारीखें ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार तय की जाती हैं। कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की संस्कृति, परंपरा और आस्था का ऐसा संगम है, जहां आकर हर किसी को जीवन भर का अनुभव मिलता है। अगर आप जीवन में कभी इस मेले का हिस्सा बनते हैं, तो यह अनुभव आपको हमेशा याद रहेगा। यह सिर्फ गंगा-स्नान भर नहीं है, बल्कि भारत की असली आत्मा को महसूस करने का मौका है।



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