परिचय:
खाटू श्याम मंदिर का इतिहास क्या है?: प्रणाम भक्तों , जैसा कि आप जानते है कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर गली-कूचे में मंदिर और आस्था की अलग पहचान देखने को मिलती है। इन्हीं मंदिरों में से एक है राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर। यह मंदिर न सिर्फ राजस्थान बल्कि पूरे भारत के भक्तों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। यहाँ आने वाले लोग मानते हैं कि खाटू श्याम जी उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं और जीवन की परेशानियों को दूर करते हैं।

खाटू श्याम मंदिर का इतिहास क्या है? – से जुड़े कुछ सवाल
| सवाल | जवाब |
|---|---|
| खाटू श्याम मंदिर का इतिहास क्या है | यह मंदिर महाभारत वीर बर्बरीक की पूजा के लिए बना है |
| खाटू श्याम जी कौन हैं | बर्बरीक, जो श्रीकृष्ण के वरदान से श्याम कहलाए |
| खाटू श्याम मंदिर कहाँ है | राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गाँव में |
| खाटू श्याम मंदिर की स्थापना कब हुई | 11वीं शताब्दी में |
| खाटू श्याम जी की पूजा क्यों की जाती है | भक्तों की हर मनोकामना पूरी करने के लिए |
| खाटू श्याम जी के दर्शन का महत्व क्या है | माना जाता है कि दर्शन से कष्ट दूर होते हैं |
| खाटू श्याम जी का मेला कब लगता है | हर साल फाल्गुन मास में |
| खाटू श्याम जी की कथा क्या है | बर्बरीक ने महाभारत युद्ध में सिर दान दिया था |
| खाटू श्याम मंदिर राजस्थान में कहाँ स्थित है | सीकर जिले के खाटू धाम में |
| खाटू श्याम जी के चमत्कार क्या माने जाते हैं | रोग निवारण और इच्छापूर्ति से जुड़े |
खाटू श्याम जी कौन हैं?
दोस्तों , आपको बता दें कि खाटू श्याम जी को भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत युद्ध के महान योद्धा घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ही आगे चलकर खाटू श्याम के नाम से पूजे गए। बर्बरीक ने महाभारत के समय भगवान श्रीकृष्ण को अपना सिर दान कर दिया था। उनकी भक्ति और बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें यह वरदान दिया कि कलियुग में वे श्याम नाम से पूजे जाएंगे और उनके दर्शन मात्र से भक्तों के सारे कष्ट दूर होंगे।
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मंदिर का इतिहास और स्थापना कब हुई
दोस्तों , मंदिर का इतिहास काफी रोचक है। माना जाता है कि खाटू श्याम जी का शीश महाभारत युद्ध के बाद जमीन में दफन हो गया था। सैकड़ों सालों बाद, एक ग्वाले को सपने में संकेत मिला कि यहाँ एक दिव्य सिर दबा हुआ है। जब उस स्थान को खोदा गया तो चमत्कारिक रूप से शीश प्रकट हुआ।
राजा रूप सिंह चौहान और उनकी पत्नी नरसी बाई ने 11वीं सदी में इस शीश को एक भव्य मंदिर में स्थापित कराया। तभी से यह स्थान खाटू श्याम मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मंदिर की वास्तुकला भी बेहद खास है, जिसमें संगमरमर और नक्काशीदार कलाकृतियाँ देखने को मिलती हैं।
आस्था और महत्व:
तो दोस्तों , खाटू श्याम जी को हारे का सहारा भी कहा जाता है। भक्त मानते हैं कि जो व्यक्ति निराश या हताश होकर श्याम जी की शरण में आता है, उसकी हर समस्या का समाधान मिलता है। फाल्गुन मास में यहाँ विशाल मेला आयोजित होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। इस मेले में श्याम भक्त भजन-कीर्तन और जागरण करके पूरी रात भगवान की महिमा गाते हैं।
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खाटू श्याम की आरती:
मंदिर में रोज़ सुबह-शाम आरती होती है। भक्त इस आरती को गाकर श्याम बाबा को प्रसन्न करते हैं। यहाँ एक प्रसिद्ध आरती प्रस्तुत है –
“आरती कीजै श्याम जी की, संग बाजे मृदंग ढोल।
श्याम हमारे बड़े दयालु, सब पर करते कृपा अनमोल।
खाटू नगरी में विराजे, भक्तों की सुनते पुकार।
जो भी शरण में आता है, श्याम सँवारें उसका संसार।”
निष्कर्ष:
खाटू श्याम मंदिर केवल एक धार्मिक स्थान नहीं है, बल्कि यह आस्था, विश्वास और भक्ति का अद्भुत संगम है। यहाँ आने वाला हर भक्त यह अनुभव करता है कि श्याम जी सच में हारे का सहारा हैं। अगर आप जीवन में कभी कठिनाई या संकट से घिरे हों, तो खाटू श्याम जी की शरण लेना आपके मन को शांति और शक्ति देगा। तो भक्तों , कैसा लगा आपको यह आर्टिकल , अगर अच्छा लगा हो तो आप हमे कमेन्ट बॉक्स मे जरूर बताएं और साथ ही अपने दोस्तों और रिस्तेदारों के साथ जरूर शेयर करें।


