भारत त्योहारों का देश है और हर त्योहार अपनी अनोखी परंपराओं और रिवाजों के लिए जाना जाता है। जब दीपावली आती है तो हर घर रोशनी से जगमगाता है, मिठाइयों की खुशबू फैली रहती है और इसी बीच घर के आँगन में जो सबसे ज़्यादा नज़र खींच लेता है, वो है रंगोली। आपने भी देखा होगा कि दिवाली पर हर घर के दरवाज़े या आँगन में रंग-बिरंगी रंगोली बनाई जाती है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि दिवाली पर रंगोली बनाने की परंपरा कहाँ से आई? आखिर दिवाली रंगोली का इतिहास क्या है?

रंगोली क्या है और इसका महत्व क्यों है?
रंगोली असल में रंग-बिरंगे पाउडर, फूलों की पंखुड़ियों, चावल, गोबर या आटे से बनाई जाने वाली एक सजावट की कला है। यह सिर्फ सजावट नहीं बल्कि शुभता और सकारात्मकता का प्रतीक मानी जाती है। कहा जाता है कि रंगोली बनाने से घर में देवी लक्ष्मी का प्रवेश होता है और बुरी नज़र दूर रहती है।
दिवाली पर जब लोग रंगोली बनाते हैं तो इसका मकसद सिर्फ घर सुंदर दिखाना नहीं होता, बल्कि यह एक तरह से माँ लक्ष्मी का स्वागत करने का तरीका भी होता है। यही कारण है कि हर साल दिवाली आते ही रंगोली बनाने की होड़ सी लग जाती है। कोई फूलों से सजाता है तो कोई रंगीन पाउडर से अद्भुत डिज़ाइन बनाता है।
दिवाली रंगोली का इतिहास क्या है?
अब सबसे बड़ा सवाल – दिवाली रंगोली का इतिहास क्या है? इसके पीछे कई मान्यताएँ और कहानियाँ जुड़ी हुई हैं।
- सबसे पुरानी मान्यता यह है कि रंगोली की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। उस समय लोग आँगन और घर को गोबर और मिट्टी से लीपकर, उस पर आटे या चावल से सुंदर आकृतियाँ बनाते थे। इसे शुभ माना जाता था क्योंकि इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती थी।
- दूसरी मान्यता पौराणिक कथाओं से जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बार देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से प्रार्थना की कि वे एक मृत लड़के को जीवित करें। तब ब्रह्मा ने आदेश दिया कि ज़मीन पर उसकी आकृति बनाई जाए। इस तरह से रंगोली बनाने की शुरुआत हुई।
- विशेष रूप से दिवाली के समय रंगोली बनाने का कारण यह माना जाता है कि इस दिन लक्ष्मी माता धरती पर आती हैं और जो भी घर साफ-सुथरा और रंगोली से सजा होता है, वहाँ वे ज़रूर जाती हैं। यही वजह है कि रंगोली को दिवाली का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।
प्राचीन काल में रंगोली कैसे बनाई जाती थी?
आजकल हम बाज़ार से रंग-बिरंगे पाउडर लाकर रंगोली बना लेते हैं, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। पुराने समय में लोग प्राकृतिक चीज़ों से रंगोली बनाते थे।
- सफेद रंग के लिए चावल का आटा या चूना इस्तेमाल होता था।
- लाल रंग के लिए सिंदूर या गेरू मिट्टी ली जाती थी।
- हरे रंग के लिए पत्तों का पाउडर या ताज़ी घास का रस इस्तेमाल किया जाता था।
- पीला रंग हल्दी से बनाया जाता था।
क्षक्ष इस तरह रंगोली पूरी तरह से प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल होती थी। यही वजह है कि इसे न सिर्फ सुंदर माना जाता था बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक नहीं थी।
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भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है और यहाँ हर राज्य में रंगोली की अपनी एक खास पहचान है।
- महाराष्ट्र में इसे रंगोली ही कहते हैं।
- तमिलनाडु में इसे कोलम कहा जाता है, जहाँ महिलाएँ हर सुबह घर के बाहर चावल के आटे से आकृतियाँ बनाती हैं।
- कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इसे मुग्गुलु या मुग्गु कहा जाता है।
- गुजरात और राजस्थान में इसे सांझी या सांजना कहते हैं।
भले ही नाम अलग हों, लेकिन इन सबका मकसद एक ही है। घर में खुशियाँ और सकारात्मकता लाना।
दिवाली पर रंगोली के डिज़ाइन और उनकी मान्यता?
आपने देखा होगा कि दिवाली पर सिर्फ गोल-गोल आकृतियाँ ही नहीं बल्कि दीपक, कमल का फूल, स्वस्तिक, ॐ, शंख और यहाँ तक कि भगवान गणेश व लक्ष्मी के चित्र भी रंगोली में बनाए जाते हैं। हर डिज़ाइन का अपना महत्व होता है।
- दीपक की आकृति : अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक।
- कमल का फूल : लक्ष्मी माता का प्रिय फूल और पवित्रता का प्रतीक।
- स्वस्तिक : शुभ और मंगलकारी चिन्ह।
- गणेश जी की आकृति : विघ्नहर्ता का आशीर्वाद पाने के लिए।
दिवाली रंगोली का इतिहास और आधुनिक समय?
समय के साथ रंगोली बनाने का तरीका बदल गया है। आजकल लोग ऐप्स से डिज़ाइन देखकर रंगोली बनाते हैं, रेडीमेड स्टिकर और प्लास्टिक की रंगोली भी बाज़ार में मिलती है। लेकिन असली मज़ा तो खुद बैठकर रंगोली बनाने में ही है। यही असली परंपरा है जो हमें हमारे इतिहास से जोड़ती है।
दिवाली रंगोली से जुड़े 5 रोचक तथ्य?
- रंगोली का ज़िक्र सबसे पहले संस्कृत ग्रंथों और महाभारत में भी मिलता है।
- महाराष्ट्र में रंगोली बनाना रोज़ की परंपरा है, जबकि अन्य राज्यों में खास त्योहारों पर ही इसे बनाया जाता है।
- पहले रंगोली में सिर्फ ज्यामितीय आकृतियाँ होती थीं, लेकिन अब इसमें मॉडर्न आर्ट और 3D डिज़ाइन भी शामिल हो गए हैं।
- माना जाता है कि रंगोली बनाने से घर के छोटे बच्चों की एकाग्रता और रचनात्मकता भी बढ़ती है।
- दिवाली के दौरान रंगोली प्रतियोगिताएँ भी कराई जाती हैं, जिनमें लोग अपनी कला दिखाते हैं।

निष्कर्ष:दिवाली रंगोली का इतिहास क्या है?
तो भाई, अब आपने जान लिया कि दिवाली रंगोली का इतिहास क्या है? असल में रंगोली सिर्फ सजावट का हिस्सा नहीं है बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं की पहचान है। यह हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ती है और साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा लाती है। दिवाली पर रंगोली बनाने का असली मकसद है माँ लक्ष्मी का स्वागत करना और घर को शुभ बनाना।
आजकल चाहे तकनीक ने कितना भी विकास कर लिया हो, लेकिन रंगोली बनाने की परंपरा आज भी उतनी ही ज़िंदा और खूबसूरत है जितनी सदियों पहले थी। इसलिए इस दिवाली आप भी रंगोली ज़रूर बनाइए और परंपरा के साथ-साथ अपनी रचनात्मकता को भी चमकाइए।



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