नवरात्रि 2025 में कन्या पूजा कब करना है?

नवरात्रि 2025 में कन्या पूजा कब करना है? प्रणाम भक्तों कैसे हैं आप सभी? आशा करता हूँ की आप ठीक ही होंगे दोस्तों आपको पता है की अभी नवरात्रि का समय चल रहा है ऐसे में मत रानी के भक्तों का सबसे बड़ा सवाल है की नवरात्रि 2025 में कन्या पूजा कब करना है? यानि की आपको कब कन्या पूजा करनी है? तो चलिए जानते हैं इस विषय पर पूरी जानकारी।

नवरात्रि 2025 में कन्या पूजा कब करना है

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1. नवरात्रि और कन्या पूजा का महत्व क्या है?

नवरात्रि का अर्थ है ‘नौ रातें’, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान लोग अपने घर, परिवार और मन को सकारात्मक ऊर्जा से भरते हैं।

कन्या पूजा विशेष रूप से इस पर्व में किया जाता है। इसमें नौ कन्याओं का स्वागत करके उन्हें भोजन कराया जाता है और उनके पैर धोकर सम्मानित किया जाता है। यह पूजा केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बच्चों और महिलाओं के प्रति सम्मान और सेवा का प्रतीक है। कन्या पूजन यह सिखाता है कि सच्चा धर्म केवल मंदिर में जाकर पूजा करने में नहीं है, बल्कि छोटे-छोटे जीवों और समाज के कमजोर वर्गों की सेवा में भी है।

2. नवरात्रि 2025 की तारीखें कौन कौन सी है?

नवरात्रि 2025 की शुरुआत 22 सितंबर से हो रही है और यह 30 सितंबर तक चलेगी। यह नौ दिन माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का पर्व है।

कन्या पूजा को नवरात्रि के अष्टमी या नवमी के दिन किया जाता है।

  • महाष्टमी: 30 सितंबर 2025 – इस दिन मां महागौरी के बाद कन्या पूजन किया जाता है।
  • महानवमी: 1 अक्टूबर 2025 – इस दिन मां सिद्धिदात्री के बाद कन्या पूजन किया जा सकता है।

शुभ मुहूर्त: सुबह 6 बजे से 9 बजे तक।

इस दिन की पूजा से घर में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा आती है।

3. कन्या पूजा करने की सही विधि क्या है?

कन्या पूजन का तरीका बेहद सरल है, लेकिन इसमें कुछ विशेष नियमों का पालन करना ज़रूरी है।

  1. सबसे पहले घर को साफ़ और सजाया जाता है। पूजा के लिए हल्का रंगीन कपड़ा बिछाया जाता है।
  2. नौ कन्याओं को आमंत्रित करें। अगर नौ कन्याओं का इंतजाम नहीं हो सकता, तो कम संख्या में भी किया जा सकता है।
  3. उन्हें बैठाकर पैर धोएं और साफ़ कपड़े पहनाएँ।
  4. पूजा में दीपक, फूल, मिठाइयाँ, हल्दी और अभरक का उपयोग करें।
  5. पूजन के बाद कन्याओं को भोजन कराएँ और दान दें।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पूजा भक्ति और सच्चे मन से की जाए

4. कन्या पूजा के लाभ क्या क्या हैं?

  1. धार्मिक लाभ: माता दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और मनोबल बढ़ता है।
  2. सामाजिक संदेश: बच्चों और समाज के कमजोर वर्ग के प्रति सम्मान और सेवा का भाव जागृत होता है।
  3. सकारात्मक ऊर्जा: घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  4. परिवारिक संबंध मजबूत: पूरे परिवार के सदस्य मिलकर पूजा करने से रिश्तों में मिठास बढ़ती है।

5. नवरात्रि 2025 में कन्या पूजा से जुड़े 5 रोचक Facts:

  1. कन्या पूजन का चलन अस्ट्रोलॉजिकल और पंचांग अनुसार हजारों साल पुराना माना जाता है।
  2. यह पूजा केवल बच्चों के प्रति सम्मान नहीं, बल्कि प्रकृति और मानवता की सेवा का प्रतीक भी है।
  3. कई जगहों पर इस दिन सोने और चांदी का दान भी किया जाता है।
  4. कुछ समुदायों में कन्याओं को नौ दिन तक अलग पूजा स्थान पर रखा जाता है और हर दिन अलग-अलग भोजन और फूल अर्पित किए जाते हैं।
  5. कन्या पूजन से जुड़ी कई लोककथाएँ हैं, जो इसे मां दुर्गा के दर्शन का मार्ग भी मानती हैं।

6. अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

Q1. नवरात्रि 2025 में कन्या पूजा कब करनी चाहिए?

Ans: महाष्टमी तिथि 30 सितंबर 2025 को सबसे शुभ माना जाता है। नवमी तिथि 1 अक्टूबर को भी पूजा की जा सकती है।

Q2. क्या कन्या पूजन केवल नौ कन्याओं से करना जरूरी है?

Ans: नहीं, यदि नौ कन्याओं का इंतजाम नहीं है तो कम संख्या में भी पूजा की जा सकती है।

Q3. कन्या पूजन के लिए कौन-कौन से सामान चाहिए?

Ans: फूल, हल्दी-अभरक, दीपक, मिठाइयाँ, ताजगी वाला भोजन और साफ कपड़े।

Q4. कन्या पूजन का शुभ समय क्या है?

Ans: सुबह 6 बजे से 9 बजे तक।

Q5. कन्या पूजन के बाद क्या करना चाहिए?

Ans: पूजन के बाद कन्याओं को भोजन कराएँ और उनके आशीर्वाद को ग्रहण करें।

निष्कर्ष: नवरात्रि 2025 में कन्या पूजा कब करना है?

नवरात्रि 2025 में कन्या पूजा कब करना है, यह जानना हर भक्त के लिए महत्वपूर्ण है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक सेवा और बच्चों के सम्मान का संदेश भी देती है। महाष्टमी (30 सितंबर 2025) को इसे करना सबसे शुभ माना जाता है, लेकिन नवमी (1 अक्टूबर) को भी पूजा की जा सकती है। सही तरीके से पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा आती है।

Disclaimer:

यह आर्टिकल केवल सामान्य जानकारी के लिए है। पूजा का सही समय और विधि के लिए स्थानीय पंचांग और धार्मिक मार्गदर्शन का पालन करें।

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