राजस्थान में रंगोली को क्या कहते हैं?: प्रणाम दोस्तों , जैसा कि आप जानते है कि भारत की हर एक संस्कृति अपने आप में खास है। अलग-अलग राज्यों की परंपराओं में भले ही रंग अलग हों, लेकिन उनकी खूबसूरती और अपनापन हमेशा जुड़ा रहता है। जब बात त्योहारों और शुभ मौकों की आती है, तो हर किसी के घर के आंगन को सजाने का एक अलग ही तरीका होता है। कहीं लोग दीप सजाते हैं, कहीं तोरण बांधते हैं और कहीं रंगों से जमीन पर खूबसूरत डिजाइन बनाते हैं, जिसे हम रंगोली कहते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि राजस्थान में रंगोली को क्या कहते हैं?
दरअसल, राजस्थान की संस्कृति इतनी समृद्ध है कि यहां हर चीज़ को अपने खास अंदाज़ में देखा और जिया जाता है। यहां रंगोली को सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि शुभता और आस्था का प्रतीक माना जाता है। और राजस्थान में रंगोली को मांडणा (Mandana) कहा जाता है।

मांडणा क्या है?
दोस्तों , अगर आप राजस्थान की गलियों में किसी त्यौहार या शादी-ब्याह के वक्त जाएं तो आपको घर की चौखट और आंगन में सफेद मिट्टी और लाल गेरू से बने खूबसूरत डिजाइन दिखेंगे। इन्हीं डिजाइनों को मांडणा कहा जाता है। यह राजस्थान की लोककला का एक अहम हिस्सा है। मांडणा शब्द संस्कृत के “मंडन” से आया है, जिसका अर्थ होता है सजावट या अलंकरण करना।
मांडणा बनाने के लिए पहले जमीन को गोबर और मिट्टी से लीपा जाता है ताकि सतह साफ और चिकनी हो जाए। फिर उस पर चूने, खड़िया मिट्टी या लाल गेरू से डिजाइन बनाए जाते हैं। इन डिजाइनों में अक्सर आकृतियां होती हैं जैसे – सूरज, चाँद, फूल-पत्तियां, ज्यामितीय पैटर्न, और कभी-कभी जानवर-पक्षियों की भी झलक।
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राजस्थान में मांडणा बनाने का महत्व
राजस्थान में मांडणा बनाना सिर्फ सजावट भर नहीं है। इसे शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। लोग मानते हैं कि इससे घर में सुख-शांति आती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है। खासकर दिवाली, होली, तीज, करवा चौथ, गणगौर और शादी-ब्याह जैसे अवसरों पर मांडणा जरूर बनाया जाता है।
- धार्मिक महत्व – मांडणा को देवी-देवताओं को खुश करने और घर में सकारात्मक ऊर्जा लाने का जरिया माना जाता है।
- त्योहारों का प्रतीक – हर बड़ा त्योहार मांडणा के बिना अधूरा लगता है।
- महिला कला का प्रतीक – राजस्थान में मांडणा ज्यादातर महिलाएं बनाती हैं, और यह उनकी सृजनात्मकता और कला का बेहतरीन रूप है।
मांडणा और रंगोली में फर्क क्या है?
दोस्तों , अब कई लोग सोचते हैं कि मांडणा और रंगोली में फर्क क्या है। असल में दोनों का उद्देश्य तो एक ही है – घर को सजाना और शुभता लाना। लेकिन इनके बनाने के तरीके और सामग्री अलग होती है।
- रंगोली ज्यादातर रंग-बिरंगे पाउडर, फूलों की पंखुड़ियों या रंगीन चावल से बनाई जाती है।
- वहीं, मांडणा में मुख्य रूप से मिट्टी, गेरू और सफेद खड़िया का इस्तेमाल होता है।
- रंगोली में रंग और डिजाइन बहुत चमकदार और आधुनिक होते हैं, जबकि मांडणा ज्यादातर सरल, पारंपरिक और ज्यामितीय पैटर्न में होते हैं।
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मांडणा से जुड़े रोचक फैक्ट्स?
- हजारों साल पुरानी परंपरा – मांडणा बनाने की परंपरा हजारों साल पुरानी है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है।
- मिट्टी और प्रकृति का मेल – इसमें गेरू (लाल मिट्टी) और खड़िया (सफेद मिट्टी) का इस्तेमाल होता है, जिससे यह पर्यावरण-हितैषी कला मानी जाती है।
- महिलाओं की पहचान – मांडणा राजस्थान की ग्रामीण महिलाओं की कला का प्रतीक है। गांवों में इसे घर की महिलाओं की क्रिएटिविटी से जोड़ा जाता है।
- लोककथाओं का हिस्सा – कई लोककथाओं और रीति-रिवाजों में मांडणा का जिक्र मिलता है, जहां इसे देवी-देवताओं का स्वागत करने का माध्यम कहा गया है।
- विश्व स्तर पर पहचान – मांडणा कला को आज इंटरनेशनल लेवल पर भी प्रदर्शित किया जाता है, और विदेशों में इसे राजस्थान की पहचान के तौर पर दिखाया जाता है।

मांडणा से जुड़ी दिलचस्प बातें?
दोस्तों , राजस्थान में मांडणा सिर्फ आंगन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दीवारों, दरवाजों और मंदिरों में भी बनाया जाता है। गांव की महिलाएं अक्सर आपस में मिलकर मांडणा बनाती हैं और इसे एक उत्सव की तरह मनाती हैं। यह उनके लिए सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि एक सामाजिक जुड़ाव का हिस्सा भी है।
आज के समय में जब रंगोली बनाने के लिए मार्केट में तरह-तरह के रंग और डिजाइन उपलब्ध हैं, तब भी राजस्थान में मांडणा की परंपरा उतनी ही ताजगी के साथ चल रही है। कई बार तो लोग इसे सीखने के लिए वर्कशॉप तक आयोजित करते हैं.
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मांडणा कला का भविष्य कैसा है?
दोस्तों , अब सवाल यह है कि क्या मांडणा कला भविष्य में भी उतनी ही जीवंत रहेगी जितनी आज है? तो इसका जवाब है – हां। क्योंकि मांडणा केवल एक कला नहीं, बल्कि एक संस्कृति है। राजस्थान के लोग अपनी परंपराओं को सहेजने में बेहद गर्व महसूस करते हैं। हालांकि शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली के कारण इसके तरीके बदल रहे हैं। अब लोग इसे रंगों और पेंट से भी बनाने लगे हैं ताकि ज्यादा समय तक टिके रहे।
- संरक्षण की कोशिशें – सरकार और कई संस्थाएं मांडणा कला को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शनियां और प्रतियोगिताएं आयोजित करती हैं।
- युवा पीढ़ी की रुचि – कई युवा इसे सीखकर सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं, जिससे यह कला नई पीढ़ी में भी लोकप्रिय हो रही है।
- पर्यटन से जुड़ाव – राजस्थान आने वाले पर्यटक मांडणा कला से बेहद प्रभावित होते हैं और इसे राजस्थान की खूबसूरती का हिस्सा मानते हैं।
निष्कर्ष: राजस्थान में रंगोली को क्या कहते हैं?
तो भाई, अब आप समझ ही गए होंगे कि राजस्थान में रंगोली को “मांडणा” कहा जाता है। यह सिर्फ रंगों की सजावट नहीं, बल्कि परंपरा, आस्था और संस्कृति का प्रतीक है। मांडणा राजस्थान की मिट्टी से जुड़ी ऐसी कला है जो हर किसी को अपनी ओर खींच लेती है। यह महिलाओं की सृजनात्मकता का रूप है और त्योहारों का अहम हिस्सा भी।
आज के मॉडर्न जमाने में भी अगर कोई चीज़ लोगों को अपनी जड़ों से जोड़े रखती है, तो वह है मांडणा जैसी परंपराएं। यह सिर्फ आंगन की खूबसूरती नहीं बढ़ाती, बल्कि घर में सकारात्मकता और खुशहाली भी लाती है। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो आप हमे कमेन्ट बॉक्स मे जरूर बताएं और साथ अपने घरवालों को जरूर शेयर करें।


