जब भी हम रामायण की बात करते हैं, तो राम और सीता का नाम साथ-साथ ही आता है। भगवान राम धर्म और आदर्शों के प्रतीक माने जाते हैं, वहीं माता सीता त्याग, धैर्य और पवित्रता की मिसाल हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि इतनी महान और तपस्विनी सीता का जीवन आखिरकार कैसे समाप्त हुआ? सीता की मृत्यु के बारे में जानने के लिए हमें रामायण के उत्तरकांड और वाल्मीकि रामायण में लिखे आखिरी प्रसंगों को समझना ज़रूरी है।
सीता का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। बचपन में राजा जनक के दरबार में हल की नोक से धरती से उनका प्रकट होना, फिर भगवान राम से विवाह, उसके बाद रावण द्वारा हरण और लंबा वनवास – ये सब घटनाएँ उनके जीवन को असाधारण बनाती हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि रामायण का अंत सीता के लिए सुखद नहीं रहा। चलिए, आपको मैं पूरा किस्सा इंसानी भाषा में, जैसे कोई दोस्त समझा रहा हो, उसी अंदाज़ में बताता हूँ।

सीता जी का त्याग एक दर्दनाक मोड़?
रामायण के युद्ध के बाद जब राम ने रावण को मारकर सीता को वापस अयोध्या लाया, तो पूरे राज्य में खुशी का माहौल था। राम और सीता का राज्याभिषेक हुआ, और लोग उन्हें आदर्श राजा-रानी मानने लगे। लेकिन वक्त ने धीरे-धीरे करवट बदली।
अयोध्या में कुछ लोग सीता की अग्निपरीक्षा पर सवाल उठाने लगे। राम ने यद्यपि सीता को पवित्र घोषित कर दिया था, लेकिन प्रजा की बातें सुनकर उनका मन विचलित हो गया। राम को हमेशा यह लगता था कि राजा का पहला कर्तव्य प्रजा की भावना का सम्मान करना है। और इसी कारण उन्होंने बेहद कठिन निर्णय लिया – उन्होंने सीता को त्याग दिया। यह त्याग सीता के जीवन का सबसे बड़ा मोड़ था। गर्भवती होने के बावजूद उन्हें वन में भेज दिया गया। कल्पना कीजिए, एक महिला जो अभी मां बनने वाली हो, उसे अकेले जंगल में छोड़ देना कितना बड़ा दर्द होगा।
वाल्मीकि आश्रम में जीवन?
वन में भटकते हुए सीता को महर्षि वाल्मीकि का आश्रम मिला। वाल्मीकि ने उन्हें आश्रय दिया और उनके देखरेख में सीता ने लव और कुश नामक दो जुड़वा पुत्रों को जन्म दिया। वाल्मीकि आश्रम में सीता का जीवन तपस्या, साधना और अपने बच्चों के पालन-पोषण में बीता।
लव और कुश बड़े होकर बेहद तेजस्वी और वीर बने। उन्होंने शास्त्र और शस्त्र दोनों में ही महारत हासिल की। लेकिन इस दौरान सीता का दिल हमेशा टूटा हुआ रहा। राम से अलगाव, समाज की ठोकरें और त्याग का दर्द ये सब उनके जीवन का हिस्सा बने रहे।
आखिरी समय और धरती माता में समाना?
रामायण के उत्तरकांड के अनुसार, जब लव और कुश बड़े हो गए, तब राम ने अश्वमेध यज्ञ किया। उस यज्ञ के दौरान लव और कुश ने राम की सेना को चुनौती दी और अपनी वीरता साबित की। तब राम को यह पता चला कि वे उनके ही पुत्र हैं।
इसके बाद राम ने सीता को दरबार में बुलाया ताकि वे पूरे समाज के सामने अपनी पवित्रता को फिर से साबित करें और राम के साथ अयोध्या लौट आएँ। लेकिन सीता इस बार थक चुकी थीं। उन्होंने पहले ही जीवन में कई बार अपनी पवित्रता साबित की थी। उन्हें अब दोबारा ऐसा करना मंजूर नहीं था।
यह भी जानें – राम और सीता का विवाह किस उम्र में हुआ था?
सीता ने पूरी सभा में धरती माता को पुकारा और कहा।
“हे धरती माता, यदि मैं सदा पवित्र रही हूँ, तो मुझे अपनी गोद में समा लो।”
इतना कहते ही धरती फट गई और स्वर्णिम आसन के रूप में धरती माता प्रकट हुईं। सीता उसी आसन पर बैठ गईं और धरती माता उन्हें अपनी गोद में लेकर समा गईं। इसी प्रकार सीता का अंत हुआ।यह दृश्य इतना भावुक और दर्दनाक था कि पूरा दरबार स्तब्ध रह गया। राम ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। धरती माता अपनी पुत्री को हमेशा के लिए अपने साथ ले गईं।
सीता की मृत्यु से जुड़ी भावनाएँ?
सीता की मृत्यु कोई साधारण घटना नहीं थी। यह नारी के सम्मान, त्याग और पवित्रता का प्रतीक बन गई। उनके धरती माता में समा जाने को कई लोग “सीता का मोक्ष” भी मानते हैं। इसका मतलब यह था कि उन्होंने इस दुखों से भरे संसार को त्याग दिया और अपने असली स्वरूप में लौट गईं।
आज भी जब लोग सीता का नाम लेते हैं, तो उनके त्याग और धैर्य को याद करते हैं। सीता का जीवन हमें यह सिखाता है कि इंसान चाहे कितने भी संघर्षों से गुज़रे, सच्चाई और पवित्रता हमेशा उसके साथ रहती है।

5 रोचक तथ्य सीता के जीवन और मृत्यु से जुड़े?
- धरती से जन्म : सीता का जन्म किसी सामान्य स्त्री की तरह नहीं हुआ, बल्कि वे धरती माता की गोद से प्रकट हुई थीं। इसी कारण उनका नाम भूसुता भी है।
- अग्निपरीक्षा : रामायण में सीता ने अपनी पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि में प्रवेश किया था, और अग्निदेव ने उन्हें सुरक्षित राम को लौटा दिया।
- वन में जन्मे बच्चे : सीता ने लव और कुश को महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में जन्म दिया, और दोनों ने बाद में राम को पहचान दिलाई।
- धरती माता में समाना : सीता की मृत्यु सामान्य नहीं थी, बल्कि धरती माता ने स्वयं प्रकट होकर उन्हें अपनी गोद में ले लिया।
- नारी शक्ति का प्रतीक : सीता का जीवन इस बात का उदाहरण है कि एक स्त्री कितने भी दुख सह ले, लेकिन अपने स्वाभिमान और सम्मान से कभी समझौता नहीं करती।
निष्कर्ष:सीता जी की मृत्यु कैसे हुई || पूरी जानकारी
सीता की मृत्यु कैसे हुई, इसका उत्तर यही है कि उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण धरती माता की गोद में समाकर पूरे संसार को त्याग दिया। उनका अंत दुखद जरूर था, लेकिन यह घटना उन्हें और भी महान बना देती है। सीता का जीवन हमें त्याग, धैर्य, नारी सम्मान और सच्चाई की सीख देता है।
आज भी जब लोग रामायण पढ़ते हैं, तो सीता का चरित्र सबसे ज्यादा दिल को छूता है। वे सिर्फ एक राजा की पत्नी नहीं थीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति और आदर्श का प्रतीक थीं।