Khatu Shyam Janm Katha – कैसे मिले थे श्याम बाबा को वरदान?

Khatu Shyam Janm Katha: मेरे प्यारे भक्त जनों जैसा की आप सभी को मालूम है की भारत की धरती ऐसी है जहाँ हर कहानी में भक्ति, प्रेम और वीरता की खुशबू बसती है। इन्हीं पवित्र कथाओं में एक सबसे प्रिय और लोकप्रिय कथा है खाटू श्याम बाबा की। आज लाखों श्रद्धालु “श्याम बाबा” को अपने “सहायक, रक्षक और संकटमोचन” के रूप में मानते हैं। लेकिन बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि खाटू श्याम आखिर कौन थे? उन्हें ऐसा कौन सा वरदान मिला कि आज उन्हें ‘कलियुग के भगवान’ कहा जाता है?

आइए, इस अद्भुत जन्म कथा को सरल अंदाज़ में जानते हैं।

Khatu Shyam Janm Katha – कैसे मिले थे श्याम बाबा को वरदान

बारहवीं के वीर – अभिमन्यु का पुनर्जन्म

खाटू श्याम जी का जन्म द्वापर युग में नहीं, बल्कि महाभारत काल में हुआ था। वे कोई और नहीं, बल्कि अभिमन्यु के पुत्र “बार्बरीक” थे — वही अभिमन्यु जो चक्रव्यूह तोड़ते हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। अभिमन्यु की वीरता और उत्तरा की कोमलता से जन्म लेने के कारण बार्बरीक बचपन से ही तेजस्वी, साहसी और अद्भुत शक्ति वाले थे।

तीन असाधारण बाण: लेकिन व्रत था न्याय का

बार्बरीक बचपन से ही भगवान शिव और देवी मां के उपासक थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें तीन अद्भुत बाण (Teen Baan) का वरदान दिया:

  • एक बाण पूरी सेना को निशान बना सकता था
  • दूसरा बाण उन्हें खत्म कर सकता था
  • तीसरा बाण वापिस लौट आता था

मतलब — तीन बाणों से वह पूरी दुनिया जीत सकते थे

लेकिन बार्बरीक का संकल्प साफ था — “मैं हमेशा कमजोर और पीड़ित पक्ष का साथ दूँगा।”

यही संकल्प आगे चलकर सब कुछ बदल देता है।

कुरुक्षेत्र का युद्ध और श्रीकृष्ण की परीक्षा

जब महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था, बार्बरीक भी अपना कर्तव्य निभाने युद्धभूमि पहुंचे। उन्होंने प्रण किया था कि वे “जो पक्ष कमजोर होगा”, उसी का साथ देंगे।

इसी समय भगवान कृष्ण ने एक साधु के वेश में उनकी परीक्षा ली।
कृष्ण ने पूछा:

“युद्ध में तुम किसका साथ दोगे?”

बार्बरीक ने स्पष्ट कहा:

“जहाँ अन्याय होगा, जहाँ कोई कमजोर होगा — मैं उसी का साथ दूँगा।”

कृष्ण मुस्कुराए और समझ गए कि यह निश्चय भविष्य में युद्ध को उलट-पलट देगा। क्योंकि:

  • जिस पक्ष में बार्बरीक लड़ते
  • वह तुरंत मजबूत हो जाता
  • और वह दूसरा पक्ष फिर कमजोर बन जाता
  • और बार्बरीक फिर उसके पक्ष में चले जाते

इस तरह युद्ध कभी खत्म ही नहीं होता

वह क्षण जिसने बार्बरीक को ‘श्याम’ बना दिया

कृष्ण ने तब उनसे एक अंतिम दान माँगा — उनका शीश।

बार्बरीक ने बिना कोई सवाल पूछे अपना शीश दान कर दिया।
यह देखकर कृष्ण की आँखें भी भर आईं।

इस निस्वार्थ दान, भक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने वरदान दिया:

“कलियुग में तुम्हारी मेरे नाम ‘श्याम’ से पूजा होगी।

जो तुम्हें सच्चे मन से याद करेगा, उसके दुख मैं दूर करूँगा।
तुम्हारा मंदिर खाटू में बनेगा और तुम ‘खाटू श्याम’ कहलाओगे।”**

यही वह क्षण था जिसने बार्बरीक को खाटू श्याम बाबा बना दिया।

धड़ से अलग होते हुए भी देखा पूरा युद्ध

कृष्ण ने बार्बरीक के सिर को एक पर्वत पर स्थापित किया।
कथा है कि उन्होंने बिना शरीर के भी पूरी महाभारत का युद्ध देखा, और अंत में सबसे बड़ा योगदान उनका ही माना गया।

आज क्यों इतने प्रिय हैं श्याम बाबा?

खाटू श्याम बाबा को आज “हारे का सहारा” कहा जाता है क्योंकि:

  • वे हर भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं
  • मुश्किल समय में मार्ग दिखाते हैं
  • सच्चे मन से किया गया वरदान, जल्दी सुनते हैं
  • उनका दरबार हमेशा करुणा और कृपा से भरा रहता है

निष्कर्ष: Khatu Shyam Janm Katha – कैसे मिले थे श्याम बाबा को वरदान?

Khatu Shyam Janm Katha सिर्फ एक धार्मिक कहानी नहीं, बल्कि त्याग, बलिदान और भक्ति का अनुपम उदाहरण है।
बार्बरीक का त्याग ही कारण है कि आज खाटू श्याम बाबा कलियुग में सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक बन चुके हैं।

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