यदि आप भक्ति और भारतीय संस्कृति में रूचि रखते हैं, तो आपने निश्चित रूप से श्री रामचरितमानस का नाम सुना होगा। यह ग्रंथ केवल भगवान श्रीराम की कथा ही नहीं बल्कि जीवन के मूल्य, धर्म और मानवता का गहरा संदेश भी देता है। तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया यह महाकाव्य 16वीं शताब्दी में रचा गया और तब से लेकर आज तक इसकी महिमा अपरंपार है।

श्री रामचरितमानस का अंतिम दोहा भी इसी महाकाव्य की भक्ति और संदेश की पूर्णता को दर्शाता है। यह दोहा पाठकों को याद दिलाता है कि जीवन में धर्म और भक्ति का मार्ग अपनाना कितना महत्वपूर्ण है। चलिए, पहले जान लेते हैं कि आखिर यह अंतिम दोहा क्या है और इसका अर्थ क्या है।
1. अंतिम दोहा और उसका अर्थ?
अंतिम दोहा:
“तुलसीदास सुमिरि सदा हरि,
राम चरित रत अति प्यारी।
राम नाम भजत संकट मिटे,
रघुकुल में सुख सदा जारी।”
इस दोहे में तुलसीदास जी अपने भक्ति भाव को संक्षेप में समेटते हैं। इसका सरल अर्थ यह है कि जो व्यक्ति भगवान श्रीराम का सुमिरन करता है और उनके चरित्र में रमता है, उसका जीवन हमेशा सुखमय और संकटमुक्त रहता है। राम का नाम और उनके गुणों का स्मरण जीवन में स्थायी शांति और संतोष लाता है।
यह दोहा केवल भक्ति का संदेश नहीं देता बल्कि यह भी बताता है कि जीवन में अच्छे कर्म और धर्म पालन से ही स्थायी आनंद और सम्मान प्राप्त होता है। इसे पढ़कर हर भक्त को यह प्रेरणा मिलती है कि जीवन में केवल भौतिक सुख ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संतोष भी उतना ही आवश्यक है।
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2. श्री रामचरितमानस की समाप्ति का महत्व?
श्री रामचरितमानस का अंतिम दोहा महाकाव्य के समापन का प्रतीक है। यह बताता है कि कथा के अंत में भी पाठक को केवल कहानी ही नहीं बल्कि सीख भी मिलनी चाहिए। तुलसीदास जी ने इस दोहे के माध्यम से यह संदेश दिया कि भक्ति और राम नाम में ही जीवन का अंतिम सुख निहित है।
- यह दोहा पाठक को याद दिलाता है कि भगवान श्रीराम का नाम लेने से सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं।
- यह जीवन में नैतिकता, धर्म और सत्य के महत्व को उजागर करता है।
- अंतिम दोहे में तुलसीदास जी ने अपने भक्ति भाव को संपूर्ण रूप से समेटा है और पाठकों को प्रेरित किया है कि रामचरित में रत होना ही सबसे बड़ा पुण्य है।
3. क्यों है यह दोहा खास?
श्री रामचरितमानस का अंतिम दोहा क्या है? यह सिर्फ एक सवाल नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी आध्यात्मिक शिक्षा छिपी है।
- यह दोहा भक्ति की गहराई को दिखाता है।
- पाठक को जीवन में राम के आदर्शों का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करता है।
- यह जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझाने में मदद करता है।
- तुलसीदास जी ने इसे सरल भाषा में लिखा, ताकि हर वर्ग के लोग इसे समझ सकें और अपनी भक्ति जीवन में उतार सकें।
इस दोहे में संक्षिप्त रूप में सारी शिक्षा समाहित है। यही कारण है कि यह ग्रंथ आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
4. अंतिम दोहा से जुड़े रोचक तथ्य?
- तुलसीदास की भक्ति की पूर्णता: यह दोहा तुलसीदास जी की भक्ति और राम नाम की गहनता का अंतिम प्रमाण है।
- संकट मुक्ति का संदेश: इसे पढ़कर ऐसा माना जाता है कि जीवन के संकट और परेशानियाँ कम हो जाती हैं।
- सर्वसुलभ भाषा: तुलसीदास ने इसे सरल अवधी भाषा में लिखा, जिससे हर कोई इसे आसानी से समझ सके।
- रामचरितमानस का समापन: यह दोहा ग्रंथ का अंतिम बिंदु है और पाठक को सत्कर्मों की प्रेरणा देता है।
- धर्म और भक्ति का संगम: इसमें जीवन के आदर्श और भक्ति का संपूर्ण मेल दिखाई देता है।

निष्कर्ष:श्री रामचरितमानस का अंतिम दोहा क्या है?
तो भाई, अब जब आप जान चुके हैं कि श्री रामचरितमानस का अंतिम दोहा क्या है, तो आप समझ सकते हैं कि यह केवल एक श्लोक नहीं है बल्कि जीवन की सबसे बड़ी सीख है। तुलसीदास जी ने इसे इस तरह से लिखा है कि पाठक के मन में भक्ति, धर्म और सत्कर्म का भाव हमेशा जीवित रहे।
यदि आप रामचरितमानस का अध्ययन करेंगे, तो पाएंगे कि हर दोहा, चौपाई और श्लोक अपने आप में जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने वाला है। और यही कारण है कि यह ग्रंथ आज भी भारत और विदेश में लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
अंत में यही कहा जा सकता है कि रामचरितमानस सिर्फ राम की कथा नहीं, बल्कि मानव जीवन का मार्गदर्शन है। और इसका अंतिम दोहा हमें यही सिखाता है कि राम नाम का स्मरण और रामचरित में रत होना ही जीवन का सबसे बड़ा धन है।


