प्रणाम दोस्तों , जैसा कि आप जानते है कि धार्मिक मान्यताओं में गोवर्धन पूजा का बहुत खास महत्व है। कार्तिक मास की अमावस्या के अगले दिन, यानि दिवाली के दूसरे दिन, गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के अभिमान को तोड़ा था और वृंदावन वासियों को सुरक्षित रखा था। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर गोवर्धन की पूजा से कौन से देवता नाराज थे?
दरअसल, नाराज देवता थे देवताओं के राजा इंद्रदेव। क्योंकि उन्हें लगा कि उनकी पूजा छोड़कर लोग किसी और की ओर झुक गए हैं। अब आइए विस्तार से समझते हैं कि यह घटना क्यों और कैसे हुई।

गोवर्धन की पूजा से कौन से देवता नाराज थे? – से जुड़े कुछ सवाल
| सवाल | जवाब |
|---|---|
| गोवर्धन पूजा से कौन नाराज थे | इंद्र देव नाराज हुए थे |
| गोवर्धन पूजा की कहानी क्या है | भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा रोककर गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कराई |
| गोवर्धन पूजा किस देवता के लिए होती है | यह पूजा श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत के लिए होती है |
| इंद्र देव और गोवर्धन पूजा का संबंध क्या है | इंद्र देव नाराज होकर मूसलधार बारिश करने लगे थे |
| गोवर्धन पूजा का कारण क्या है | प्रकृति और अन्नदाता की रक्षा के लिए |
| गोवर्धन पूजा का महत्व क्या है | इससे अन्न, जल और प्रकृति की कदर करना सिखाया जाता है |
| गोवर्धन पूजा क्यों की जाती है | गाय, अन्न और गोवर्धन पर्वत के प्रति आभार जताने के लिए |
| गोवर्धन पूजा किसने शुरू की | भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गोवर्धन पूजा की थी |
इंद्रदेव का अभिमान और श्रीकृष्ण का संदेश क्या था?
दोस्तों , आपको बता दें कि पुराणों के अनुसार, हर साल वृंदावन के लोग इंद्रदेव की पूजा करते थे ताकि उन्हें समय पर वर्षा मिले और खेती अच्छी हो सके। लेकिन जब कृष्ण ने देखा कि गांव वाले केवल इंद्रदेव की पूजा कर रहे हैं, तो उन्होंने सवाल उठाया कि – “क्या सिर्फ इंद्रदेव से ही जीवन चलता है? हमारी खेती, पशु और प्रकृति का सहारा तो गोवर्धन पर्वत है, जो हमें चारा, जल और जीवन देता है।”
कृष्ण के कहने पर लोगों ने इंद्रदेव की पूजा छोड़ दी और गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। यही बात इंद्रदेव को बहुत बुरी लगी। उन्हें लगा कि उनकी महत्ता कम हो रही है और लोग उनका आदर नहीं कर रहे। इसी कारण वे नाराज हो गए।
इंद्रदेव का क्रोध और मूसलधार वर्षा:
दोस्तों , सबसे पहले आप यह जान लें कि नाराज होकर इंद्रदेव ने जोरदार बारिश शुरू कर दी। तूफानी हवाएं, बिजली और मूसलधार पानी से पूरे वृंदावन को डुबाने की कोशिश की गई। उनका मकसद था कि लोग डर जाएं और दोबारा उनकी पूजा करने लगें।
लेकिन कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली पर उठाकर सबको सुरक्षित कर लिया। सात दिन तक लगातार बारिश हुई, लेकिन कोई भी ग्रामीण या पशु संकट में नहीं आया। अंततः इंद्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे श्रीकृष्ण के आगे नतमस्तक हो गए।
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गोवर्धन पूजा का महत्व क्या है?
दोस्तों , इस घटना ने यह संदेश दिया कि केवल किसी देवता से डरकर पूजा नहीं करनी चाहिए, बल्कि प्रकृति और जीवन देने वाले स्रोतों का सम्मान करना चाहिए। गोवर्धन पर्वत धरती, जल, अन्न और पर्यावरण का प्रतीक है। इसलिए इस दिन गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
कृष्ण ने सिखाया कि अभिमान करने वाला चाहे देवता ही क्यों न हो, उसे झुकना पड़ता है। असली पूजा वही है जिसमें प्रकृति और लोककल्याण का भाव हो।
गोवर्धन पूजा की आरती:
गोवर्धन पूजा के दिन खास तौर पर यह आरती गाई जाती है।
आरती
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।
गगन सम अंग, कान्ति मण्डल, जलद श्याम गोपाल की।
आरती कुंज बिहारी की…
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की।
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।
निष्कर्ष: गोवर्धन की पूजा से कौन से देवता नाराज थे?
तो दोस्तों , गोवर्धन पूजा हमें यह सिखाती है कि अभिमान करने वाला चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, सच्चाई और भक्ति के आगे झुकना ही पड़ता है। इंद्रदेव नाराज हुए थे क्योंकि उनकी पूजा छोड़कर लोग गोवर्धन पर्वत की ओर झुक गए थे, लेकिन अंततः उन्हें भी अपनी गलती का अहसास हुआ। इसीलिए आज भी गोवर्धन पूजा न सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि प्रकृति और भगवान श्रीकृष्ण के संदेश का प्रतीक है। तो कैसी लगी आपको यह जानकारी , अगर अच्छी लगी हो तो आप हमे कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं और साथ ही अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें।


