84 कोसी परिक्रमा नैमिषारण्य में कहाँ होती है?: प्रणाम भक्तों , जैसा कि आप जानते है कि नैमिषारण्य, जिसे सर्वतीर्थराज भी कहा जाता है, भारत की सबसे पावन भूमि में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है। यहाँ परिक्रमा और तपस्या करने का महत्व इतना बड़ा है कि कहा जाता है, जो व्यक्ति यहाँ आकर दर्शन और परिक्रमा करता है, वह अनेक जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। इसी कारण से नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा को बहुत ही पवित्र और पुण्यदायी माना गया है।

84 कोसी परिक्रमा नैमिषारण्य में कहाँ होती है? – से जुड़े कुछ सवाल
| सवाल | जवाब |
|---|---|
| 84 कोसी परिक्रमा नैमिषारण्य में कहाँ होती है? | नैमिषारण्य, सीतापुर, उत्तर प्रदेश में गोमती नदी के किनारे। |
| 84 कोसी परिक्रमा क्या है? | यह एक धार्मिक यात्रा है जिसमें पूरे क्षेत्र में 84 कोसी का परिक्रमा किया जाता है। |
| इसे क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है? | इसे हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है, कहते हैं जो यहाँ परिक्रमा करता है उसका पाप नष्ट होता है। |
| नैमिषारण्य को और क्या कहा जाता है? | इसे सर्वतीर्थराज भी कहा जाता है। |
| तीर्थयात्रियों के लिए खास क्या है? | यहाँ परिक्रमा के दौरान कई धार्मिक स्थल और पूजा स्थान मिलते हैं। |
| 84 कोसी परिक्रमा की लंबाई कितनी है? | लगभग 84 कोसी यानी करीब 336 किलोमीटर का क्षेत्र शामिल है। |
| परिक्रमा करने का सही समय कब है? | मुख्य रूप से कार्तिक माह और सावन में भक्त ज्यादा आते हैं। |
| यात्रा की शुरुआत कहाँ से होती है? | सामान्यत: नैमिषारण्य मन्दिर से यात्रा शुरू होती है। |
| धार्मिक महत्व क्या है? | कहा जाता है, जो यहाँ परिक्रमा करता है, उसके अनेक जन्मों के पाप मिट जाते हैं। |
| पर्यटक क्या देख सकते हैं? | गोमती नदी का किनारा, प्राचीन मंदिर और तीर्थ स्थल। |
84 कोसी परिक्रमा नैमिषारण्य में कहाँ होती है?
दोस्तों , आपको बता दें कि 84 कोसी परिक्रमा नैमिषारण्य तीर्थ के चारों ओर होती है। इस परिक्रमा का दायरा लगभग 252 किलोमीटर यानी 84 कोस माना गया है। एक कोस लगभग 3 किलोमीटर के बराबर होता है। इस परिक्रमा का आरंभ चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) की शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि से होता है और यह 8 दिन तक चलता है।
परिक्रमा का मुख्य केंद्र चक्रतीर्थ है, जिसे नैमिषारण्य का हृदय कहा जाता है। श्रद्धालु यहाँ स्नान करके परिक्रमा यात्रा की शुरुआत करते हैं और फिर अलग-अलग देवी-देवताओं के स्थानों की यात्रा करते हुए अंत में वापस चक्रतीर्थ पर आते हैं।
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परिक्रमा का महत्व:
- पाप से मुक्ति – कहा जाता है कि इस परिक्रमा को श्रद्धापूर्वक करने से मनुष्य के पिछले जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति – पुराणों में लिखा है कि यहाँ की परिक्रमा करने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करता है।
- सभी तीर्थों का फल – नैमिषारण्य को “सर्वतीर्थराज” कहा गया है। इसका मतलब है कि यहाँ की एक परिक्रमा करने से सभी तीर्थों का फल मिलता है।
- आध्यात्मिक शांति – परिक्रमा करते समय भजन, कीर्तन और साधु-संतों का संग मिलता है, जिससे मन को अद्भुत शांति मिलती है।
- धर्म और आस्था का संगम – यहाँ देशभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं, जिससे यह स्थान धर्म, संस्कृति और आस्था का अद्वितीय संगम बन जाता है।
84 कोसी परिक्रमा के प्रमुख स्थान:
इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु कई पावन स्थानों पर जाते हैं –
- चक्रतीर्थ – नैमिषारण्य का सबसे पवित्र स्थान।
- हनुमानगढ़ी – जहाँ भक्त हनुमानजी का आशीर्वाद लेते हैं।
- ललिता देवी मंदिर – सिद्ध पीठ और शक्ति का केंद्र।
- व्यास गद्दी – जहाँ महर्षि वेदव्यास ने पुराणों की रचना की।
- सूत गद्दी – जहाँ सूतजी ने पुराण कथाओं का वाचन किया।
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नैमिषारण्य आरती
ॐ जय नैमिषारण्य धाम, प्रभु जय नैमिष धाम।
संतन की मनोकामना, पूरी करो श्रीराम॥
चक्रतीर्थ की महिमा गाते, साधु संत सब धाम।
भक्त जनन की सुनो पुकारा, कृपा करो श्रीराम॥
84 कोसी परिक्रमा का, अद्भुत है परिणाम।
मोक्ष प्रदाता तीर्थ ये, नित गाओ प्रभु नाम॥
ॐ जय नैमिषारण्य धाम, प्रभु जय नैमिष धाम।
निष्कर्ष:
नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि आस्था और आध्यात्मिकता का अद्भुत अनुभव है। यहाँ की परिक्रमा से जहाँ आत्मा को शांति मिलती है, वहीं जीवन का असली उद्देश्य भी समझ में आता है। अगर आप कभी जीवन में नैमिषारण्य जाने का अवसर पाएँ, तो अवश्य इस परिक्रमा में भाग लें, क्योंकि इसका फल अनमोल और अद्वितीय है।


