प्रस्तावना – मिश्रिख की भूमि फिर हुई राममय
13 से 17 अक्टूबर तक मिश्रिख में गूंजेगा रामलीला – श्रद्धा, संस्कृति और भक्ति का उत्सव हैलो दोस्तों आप को पता नहीं होगा मिश्रिख मे बहुत अच्छी राम लीला हो रही है की उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के मिश्रिख तीर्थ में एक बार फिर भक्ति और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है।
13 अक्टूबर 2025 से यहाँ पाँच दिवसीय भव्य रामलीला का आयोजन किया जा रहा है, जो 17 अक्टूबर तक चलेगी।
हर शाम मेला मैदान में “जय श्रीराम” के उद्घोष से पूरा वातावरण गूंज उठता है। श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ पहुँच रहे हैं ताकि भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और रावण के दिव्य प्रसंगों का मंचन देख सकें।

1. मिश्रिख की रामलीला की ऐतिहासिक पहचान
मिश्रिख सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा की धरोहर है।
यहाँ की रामलीला दशकों से होती आ रही है, और हर साल इसका इंतज़ार पूरे ज़िले के लोग करते हैं।
स्थानीय बुज़ुर्ग बताते हैं कि पहले यह लीला हाथ से बने मंचों पर और दीपक की रोशनी में हुआ करती थी।
आज समय बदल गया है — अब मंच साउंड सिस्टम, LED लाइट और कलात्मक साज-सज्जा से सुसज्जित है, लेकिन भक्ति वही पुरानी है।
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2. 2025 की रामलीला – भव्यता और नई ऊर्जा
इस बार की रामलीला खास है क्योंकि:
- यह 25 साल बाद बड़े स्तर पर आयोजित की जा रही है।
- आयोजकों ने हर पात्र के लिए प्रोफेशनल कलाकारों को बुलाया है।
- मंच सजावट में “अयोध्या नगरी” की झलक दी गई है।
- सीता स्वयंवर, केवट प्रसंग, वनवास, सुग्रीव-मित्रता, और रावण वध जैसे दृश्य पूरे जोश से दिखाए जा रहे हैं।
शाम को सात बजे जैसे ही मंचन शुरू होता है, तो तालियों की गड़गड़ाहट और “जय श्रीराम” के जयकारे से पूरा मैदान गूंज उठता है।
3. भक्तों का उमड़ा जनसैलाब
मिश्रिख की यह रामलीला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक उत्सव भी बन चुकी है।
लोग परिवार सहित आते हैं, बच्चे नाटकों से सीखते हैं, और बुज़ुर्गों के चेहरों पर श्रद्धा का उजाला झलकता है।
मेला मैदान में दुकानों, झूलों और खाने-पीने की वस्तुओं की भी भरमार रहती है, जिससे यह आयोजन एक छोटे मेले का रूप ले लेता है।
4. सांस्कृतिक एकता का प्रतीक
मिश्रिख की रामलीला की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें हर वर्ग और समुदाय के लोग भाग लेते हैं।
यहाँ न केवल हिंदू, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इस आयोजन में सहयोग करते हैं।
यही वजह है कि इसे “एकता और संस्कृति का प्रतीक उत्सव” कहा जाता है।
5. स्थानीय कलाकारों को मिला मंच
इस बार के मंचन में कई स्थानीय कलाकारों को मौका मिला है।
गाँव के युवाओं ने संवाद याद कर अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया है।
“हनुमान” और “लक्ष्मण” की भूमिकाओं में स्थानीय कलाकारों ने ऐसा प्रदर्शन किया कि तालियाँ रुकने का नाम नहीं ले रही थीं।
इससे न सिर्फ उनकी प्रतिभा को मंच मिला है, बल्कि गाँव की नई पीढ़ी को संस्कृति से जुड़ने का प्रेरणा स्रोत भी मिला है।
6. सुरक्षा और व्यवस्था पर विशेष ध्यान
चूंकि इस बार बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं, इसलिए प्रशासन ने भी पूरी तैयारी की है:
- सुरक्षा के लिए पुलिस बल की तैनाती
- पार्किंग और ट्रैफिक की विशेष व्यवस्था
- महिला सुरक्षा के लिए विशेष बूथ
- और स्वास्थ्य विभाग की टीम standby पर रखी गई है
इससे दर्शकों को बिना किसी असुविधा के कार्यक्रम का आनंद लेने का अवसर मिल रहा है।
7. धार्मिक महत्व और श्रद्धा का केंद्र
मिश्रिख को “ऋषि-मुनियों की तपोभूमि” भी कहा जाता है।
कहते हैं कि यहीं पर दधीचि ऋषि ने अपनी अस्थियों का दान करके देवताओं को असुरों से विजय दिलाई थी।
इसलिए यहाँ की रामलीला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव भी प्रदान करती है।
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8. डिजिटल युग में भी परंपरा जीवंत
भले ही आज सोशल मीडिया और डिजिटल मनोरंजन का ज़माना है,
लेकिन मिश्रिख की रामलीला यह साबित करती है कि परंपरा कभी पुरानी नहीं होती।
लोग अपने मोबाइल से लाइव वीडियो बना रहे हैं, Instagram और YouTube पर #MishrikhRamleela2025 ट्रेंड कर रहा है।
इससे स्थानीय आयोजन को वैश्विक पहचान मिल रही है।
9. आयोजकों की मेहनत और जनता का सहयोग
इस कार्यक्रम के पीछे स्थानीय रामलीला समिति और सैकड़ों स्वयंसेवकों की मेहनत है।
कई दिनों की तैयारी, मंच निर्माण, संवाद अभ्यास, वस्त्र व्यवस्था – सब कुछ बारीकी से किया गया है।
स्थानीय व्यापारी और सामाजिक संगठन भी आर्थिक सहयोग दे रहे हैं ताकि ये आयोजन हर साल और बेहतर हो सके।
10. समापन – रावण वध और दीपोत्सव
रामलीला का समापन 17 अक्टूबर को होगा,
जहाँ भगवान राम द्वारा रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद वध के दृश्य का मंचन किया जाएगा।
इसके बाद पूरा मैदान दीपों से सजाया जाएगा और “जय श्रीराम” के साथ रामराज्य की प्रतीक झांकी निकाली जाएगी।
यह दृश्य हर दर्शक के दिल में अमिट छाप छोड़ देगा।
निष्कर्ष – संस्कृति की लौ फिर जली मिश्रिख में
13 से 17 अक्टूबर तक चलने वाली यह रामलीला न सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है,
बल्कि यह मिश्रिख की संस्कृति, एकता और श्रद्धा का उत्सव है।
आज जब आधुनिकता के नाम पर परंपराएँ धीरे-धीरे मिट रही हैं,
ऐसे में मिश्रिख की रामलीला हमें यह सिखाती है कि भक्ति और संस्कृति अगर दिल में बस जाए,
तो समय भी उसे मिटा नहीं सकता।

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लेखक की टिप्पणी:
तो दोस्तों अगर आप भी मिश्रिख या सीतापुर के आस-पास हैं,
तो इस बार की रामलीला ज़रूर देखें – क्योंकि यह सिर्फ एक नाटक नहीं, बल्कि रामायण की जीवंत अनुभूति है।


